श्री गर्भ गीता भाग 2

आज हम पहला पाठ प्रारंभ करेंगे जिसमें अर्जुन श्री कृष्ण से कई तरह के सवाल करते हैं जैसे आत्मा, जन्म मरण के चक्कर में क्यों घूमती है मन को कैसे वश में किया जाता है ईश्वर को कैसे और कौन पा सकते हैं जिसका उत्तर भगवान बड़े ही सरल शब्दों में देते हैं

श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को प्राणी के जीवन मरण और आत्मा के अबूझ रहस्यों के बारे में जो ज्ञान दिया गया है वही गर्भ गीता कहलाता है। यह ज्ञान आपको और आपके शिशु को जीवन में सही राह चुनने में हमेशा मदद करेगा।

भारत की महान संस्कृति सदैव संस्कारों का महत्व बताती है। यहाँ जन्म से लेकर मरण तक मनुष्य के लिए 16 संस्कार बताये है। महर्षि चरक के अनुसार “संस्कारो हि गुणन्तराधानमुच्यते “ अर्थात नए गुणों को जागृत करना संस्कार कहलाता है संस्कार से मनुष्य पर आशय है मन, बुद्धि ,भावनाओं को विकसित करना, व्यक्ति में दैवी गुणों का विकास करना। जो मानव के समग्र विकास के लिए अति आवश्यक है। 16 संस्कारों की श्रृंखला में पहला संस्कार गर्भ धारण के पहले किया जाता था। जिसके माध्यम से सन्देश दिया जाता था की पति पत्नी शारीरिक मानसिक रूप से स्वस्थ है और वे एक शुभ संतान को जन्म देने हेतु योग्य है। अतः आज भी ध्यान रखना चाहिए की बस भाववश में आकर नहीं, गर्भधारण से पूर्व भावी माता पिता पूर्ण रूप से तैयार हो तभी गर्भधारण करे । उसी समय से शुभ संतान हेतु प्रार्थना प्रारम्भ कर देनी चाहिए। पूरी गर्भवस्था में भी माता विशेष ध्यान रखे गर्भस्थ प्रसन्नचित बने, जागृत बने , बहुत मेधावी बने इसके लिए रोज गर्भसंवाद द्वारा शुभ विचार पहुंचाते रहे।

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